बॉन्ड, इक्विटी निवेश में अंतर

बॉन्ड में निवेश करना शेयर में निवेश के मुकाबले कुछ कम जोखिम वाला माना जाता है। बॉन्ड में निवेश के जरिए निवेशकों ने इक्विटी बाजार के खराब प्रदर्शन के बावजूद भी अच्छे रिटर्न कमाए हैं। बॉन्ड में निवेश के जरिए किस तरह अपने पैसे की सुरक्षा की जा सकती है और इसमें बढ़ोतरी की जा सकती है। प्रामेरिका म्यूचुअल फंड के एमडी औरसीईओ विजय मंत्री ने इसके बारे में अपनी राय दी।

शेयर में निवेश के जरिए पैसे को बढ़ाया जा सकता है जबकि बॉन्ड में निवेश के जरिए अपने पैसे की सुरक्षा की जा सकती है। हालांकि जिस तरह शेयर में पीई मल्टीपल होता है उसी तरह बॉन्ड में भी पीई मल्टीपल होता है। अगर बॉन्ड 10 के पीई मल्टीपल पर मिल रहा है तो इसका मतलब है कि बॉन्ड यील्ड 10 फीसदी है।

बॉन्ड किसी भी अन्य ऐसेट श्रेणी में निवेश से कहीं अलग होता है। रियल एस्टेट, गोल्ड, शेयर में निवेश के दौरान अगर कीमतें नीचे जाती हैं तो ये बताना मुश्किल होता है कि इनकी कीमतें दोबारा कब चढ़ेंगी। अगर बॉन्ड में निवेश किया है और इसकी कीमत नीचे जाती है तो इसका मतलब है कि अगले दिन से ही बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी शुरु हो जाएगी।

अगर आपने 8 फीसदी पर 10 साल का बॉन्ड लिया है और ब्याज दरें 9 फीसदी तक चली जाती हैं तो बॉन्ड की एनएवी में गिरावट आएगी लेकिन बॉन्ड यील्ड भी 8 फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी हो जाएगी। अगर आप मैच्योरिटी तक बॉन्ड में निवेश रखते हैं तो आपके पैसे को खोने का कोई डर नहीं रहता है। बॉन्ड में निवेश के जरिए पोर्टफोलियो में स्थिरता आती है और नियमित आय मिलती है। ये किसी भी निवेशक के पोर्टफोलिया का अहम हिस्सा होना चाहिए।

अच्छे बॉन्ड में निवेश के लिए सबसे पहले देखना चाहिए कि मौजूदा पोर्टफोलियो मैच्योरिटी क्या है और मौजूदा पोर्टफोलियो यील्ड क्या है। अगर आप किसी फंड में निश्चित समय के लिए निवेश रखते हैं तो यील्ड में से खर्च घटाकर आपका रिटर्न आता है। उदाहरण के लिए लिक्विड फंड में 60 दिन की मैच्योरिटी है और मौजूदा पोर्टफोलियो यील्ड 10 फीसदी से ज्यादा है, 0.25 फीसदी का खर्च है तो अगले 60 दिनों के लिए आपको 9.75 या 10 फीसदी का रिटर्न मिल सकता है। उसी तरह अगर आप 1 साल से ज्यादा के बॉन्ड में निवेश करते हैं जिसमें 11 से 11.5 या 12 फीसदी की यील्ड मिलती है और 1.5 फीसदी का ब्याज खर्च होता है तो आपको 10 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न मिल सकता है। बॉन्ड के लिए कंपनी की एफडी को बेंचमार्क मानना चाहिए।

बॉन्ड फंड में ज्यादातक हाई नेटवर्थ इंडीविजुएल निवेश करते हैं लेकिन ये तथ्य जान लेना चाहिए बॉन्ड में निवेश के जरिए आपके पैसे की सुरक्षा भी हो सकती है और इसमें ग्रोथ भी मिल सकती है।

मार्केट गाइड: इक्विटी की दूसरे निवेश विकल्प से तुलना

लंबी अवधि में इक्विटी में निवेश के जरिए अन्य ऐसेट क्लास के मुकाबले जाहिर तौर पर अच्छे रिटर्न कमाए जा सकते हैं और इनमें लिक्विडिटी भी ज्यादा होती है। बीएसई मार्केट गाइड में आज हम इक्विटी और निवेश के दूसरे विकल्प की तुलना करेंगे। 

एक्यूएफ एडवाइजर्स के डायरेक्टर नितिन रहेजा का कहना है कि इक्विटी एक चुनौतीपूर्ण ऐसेट क्लास है। भारत जैसे देश में अभी कुल निवेश में से इक्विटी में निवेश का अनुपात काफी कम है। हालांकि इसमें जोखिम के चलते निवेशक इससे कुछ दूरी बनाकर रखना पसंद करते हैं। भारतीय निवेशकों का हमेशा सोने में निवेश करने का रुझान रहा है। सोने की तुलना में इक्विटी में निवेश करना थोड़ा नया विकल्प है।

इसके अलावा रियल एस्टेट में पैसा लगाना भी काफी अच्छी पसंद रहा है। हालांकि प्रॉपर्टी में निवेश करने से लिक्विडिटी की समस्या रहती है और इसे भी निवेशक लंबे समय तक रखने के बाद ही अच्छा रिटर्न हासिल कर सकते हैं। इतने ही समय अगर इक्विटी में भी निवेश रखा जाए तो ये भी अच्छा रिटर्न दे सकती है।

नितिन रहेजा के मुताबिक शेयर बाजार में निवेश शुरु करते समय सबसे पहले निवेशकों को अपने इक्विटी निवेश का समय लक्ष्य तय करना चाहिए। इक्विटी में निवेश के लिए आपके पास ब्रोकिंग अकाउंट होना चाहिए और इसके अलावा डीमैट अकाउंट होना चाहिए। इसके बाद आपको सेबी द्वारा रजिस्टर्ड स्टॉक ब्रोकर से ही ट्रेडिंग करनी चाहिए।

इक्विटी ट्रेडिंग एक संगठित क्षेत्र है जहां आप थोड़ी सी सावधानी के जरिए किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बच सकते हैं। आप कुछ रिसर्च अपनी तरह से कर सकते हैं कि आपका स्टॉक ब्रोकर पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं। आपको अपने जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर निवेश करने की शुरुआत करनी चाहिए। आप कितनी अस्थिरता को झेल सकते हैं और कितने रिटर्न की उम्मीद रखते हैं इसके आधार पर निवेश की रकम का निर्धारण करना चाहिए।